Monday, June 15, 2020

Why, How,Who

यह बात सही हो सकती है कि लोग जो भी समझ में आता है वैसा फार्मुला तैयार कर लेते हैं लेकिन प्रकृति के प्रकोप का इलाज प्राकृतिक उत्पाद ही हो सकते हैं इसमें दो राय हो ही नहीं सकती। करोना प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा है तो प्रकृति से या उसका अधिष्ठाता सृष्टिकर्ता से उम्मीद कर सकते हैं। सरकार के आयुष मंत्रालय ने एक प्रकृति के उत्पादों की लिस्ट जारी की है जिसमें बना मक्की तो नहीं है लेकिन नीम गिलोय तुलसी अदरक दालचीनी काली मिर्च आदि के काढ़े का एक सप्ताह में एक बार लेने से आपको कोरोना वायरस का खतरा नहीं रहेगा। अगर कोई प्यासा है तो कोई भी पानी, किसी के हाथ का, स्थान का पानी पी लेगा। वैसे आपकी जानकारी में ला दूं, कोरोना वायरस आदमी के घमंड और लालच को तोड़ने के लिए आया है और सबके मुंह ढंके हुए हैं, यूं लगता जैसे सुअर हो गए हैं सब। दहशत के मारे एक दूसरे से अलग थलग पड़े हैं। अब अपना कोई नहीं है, आपका शरीर भी आपका साथ देने वालों में नहीं, एक झपटे में सब कुछ तमाम हो सकता है। फिर भी हम हरेक की बात को विज्ञान के ज्ञान के अहंकार में और अपनी पसंद या नापसंदगी के घमंड में चूर होकर नकार देते हैं। पूरा देश कोरोना वायरस की ग्रिप में जकड़ा हुआ है। सत्ताधारी और सत्ता के भूखे भेड़िए राजनीति में लगे हैं। सलाह देने वालों का मज़ाक उड़ाते हैं। वही हम सीखकर उन जैसा व्यवहार करते हैं। चीन में गर्म पेय पदार्थ सेवन करके लोगो ने अपनी जान बचाई थी। एक ओडियो किसी भारतीय ने भेजा था, एक विडियो देखा जिसमें गर्म पानी की भाप लेने का इस्तेमाल भी करके दिखाया गया है। दुनियां में भगवान् ने हर इंसान को 100% दिमाग सबको दिया है लेकिन अवतार और महापुरुष भी 25 % से अधिक काम में नहीं ले सके। भारत में एक बात पर कहते हैं कि "यह बात सोलह आने (100%) सही है। यानि एक रुपया सोलह आने का माना जाता था और आज सौ पैसों में इनका जाता है। श्रीकृष्ण को हम सोलह कला का अवतार मानते हैं। अपने दिमाग का एक चौथाई ही इस्तेमाल किया, तीन चौथाई तो फिर भी काम में नहीं ले सके। कहने का तात्पर्य यह है कि अपने दिमाग की खिड़कियां खुली रखो, आने वाले ज्ञान की इज्जत करो। कहते हैं मौके पर जो भी हाथ लग जाए तो उसको ही हथियार बना लेना बुद्धिमानी होती है। मूर्ख लोग जो सलाह दी जाती है उसका उल्टा करते हैं। आज पूरी दुनियां लॉक अप में बंद हो चुकी है। लालची और अहंकारी आज भी धन संग्रह और सत्ता की पकड़ मजबूत बनाने में लगे हैं। अमेरिका का राष्ट्रपति ट्रम्प आज चारों ओर से घिरा हुआ है तब भी सत्ता की राग आलाप रहा है और भी कई उदाहरण मिल जाएंगे, हर क्षेत्र में।

क्या मोदी ने भारतीयों को मरने के लिए छोड़ दिया है?

आपने कभी मेल मुलाकात वालों के यहां देखा होगा कि ईद के दिन से पहले जिस बकरे को बलि नहीं हलाल करके मारा जाता है, बलि में एक झटके में ही मार दिया जाता है।

 24 मार्च से बकर ईद ही तो मना रहे हैं। क्या मोदी ने लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया है? यह सवाल ही बेमानी है।
ईद पर जिस बकरे को हलाल करना होता है ईद से पहले दिनों में उसका श्रृंगार किया जाता है और खुला छोड़ दिया जाता है, गले में माला तो होती ही है इसलिए कहीं भी खाने-पीने की मनाही नहीं होती है उसको खूब बढ़िया बढ़िया खाद्य खिलाएं जाते हैं।
यही काम मोदी ने किया, हलाल होने वालों से घंटियां, थालियां बजवाईऔर शंखनाद हुए।
उसके बाद दीप भी उन्हीं से जलवाए जिनको हलाल करना था।
फिर लॉक डॉउन घोषित किया और समझदारी का certificate भी लिया।
गोदी मिडिया के जरिए कोरोना फैलाने के लिए मुसलमानों को बदनाम करने का अभियान छेड़ा। पैरामेडिकल स्टाफ को पिटवाया भी।
क्योंकि दिल्ली के दंगे से पूरे देश में दंगे नहीं फैले थे।
इतना जहर गोदी मिडिया ने उगला फिर भी दंगे नहीं हुए।
इधर मोदी के अरबी आकाओं की आंख लाल हो गई और तो ओर उन्होंने अपनी अदालत में मोदी को सज़ा ए मौत का फैसला भी सुना दिया। बकरे हलाल हुए नहीं और मोदी को हलाल होने का फैसला सुनने को मिला।
बड़े शहरों में 12करोड़ लोगों के रास्ते जाम हो चुके थे। इनको संक्रमित करवाया (ईद तो मनानी ही है) फिर रास्ते खोले। रेलगाड़ियों हलाल नहीं कर सकी तो लॉक डॉउन खोल दिया। अब जो जहां से कोरोना से संक्रमित हुआ है और अपने घर वालों और जान पहचान वालों को संक्रमित कर रहे लगे हैं। सैकड़ों से शुरु होकर लाखों तक पहुंच गए हैं। अब ईद का सपना साकार हो रहा है, दहाई में मरने वालों की संख्या हजारों में पहुंच गई है। इससे बढ़िया ईद कौन मना सकता है?
दुनियां में जहां लॉक डॉउन हुआ वहां कोरोना घटा है और भारत में बढ़ा है। फिर भी मोदी का और उसके 22 लाख से घटकर हजारों तक सीमित अंधभक्त दावा कर रहे हैं "मरने वालों की संख्या कम है (शायद मोदी को अफसोस भी है) ठीक होने वालों की संख्या बढ़ी है (मोदी को अफसोस हुआ) इस पर गर्व कर रहे हैं।
मेरे अध्ययन के अनुसार उत्तर भारतीय इसलिए कम संक्रमित हुए हैं इसका कारण इनकी खुराक में मिर्च मसालों की मात्रा ज्यादा रही है। मजदूर संक्रमित हुए लेकिन इलाज़ के फौरन बाद नेगेटिव रिपोर्ट हुए हैं इसलिए ठीक होने वाले बढ़ रहे हैं और मरने वालों की रफ्तार कम है।
आस्था के स्तर पर भारतीय किसी भी धर्म का है अडिग है इसलिए भी मोदी की ईद फीकी है।
अगर ईद की मानसिकता नहीं होती (सांप्रदायिकता फैलाने वालों को जेल डाल दिया होता न कि विनोद दुआ पर मुकद्दमे दर्रे हुए होते) तो मार्च के पहले हफ्ते से संसाधन जुटाकर लॉक डॉउन कर दिया होता।
निजामुद्दीन दरगाह पर विदेशी पहुंचते ही नहीं। हवाई रास्ते से आने वालों को कोरन्टाईन करके ही प्रवेश दिया जाता। तब तक 12 करोड़ प्रवासी संक्रमित ही नहीं होते, अपने घरों तक पहुंच चुके होते और आज अफरातफरी मची है वह होती ही नहीं।
मोदी इस पूरे समय में 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी में व्यस्त रहा, सारे सरकारी संस्थानों के नीजि क्षेत्र को हस्तांतरित करने, राज्य की गैर बीजेपी सरकारों को गिराने की उधेड़बुन में रहा। आज भी एक साल बाद होने वाले चुनावों की तैयारी में हजारों करोड़ रुपये बर्बाद करने पर आमादा है।
भारत पर हुकुमत कायम रहे और ईद भी मनाते चलें (देशवासियों को मरने के लिए छोड़ दिया) साथ ही हर भारतीय भिखारी हो जाए।
यह मोदी की चाणक्य नीति है।

अंधेरा क़ायम रहे

क्या 21 जून 2020 को खत्म हो जाएगी दुनिया? माया कैलेंडर पर चौंकाने वाला खुलासा, लेकिन यह साजिश उन लोगों की है जो चाहते हैं "अंधेरा क़ायम रहे" और इसकी जानकारी ZEE TV ने दी है जो देश और दुनियां में दहशत फैलाने के मोदी ठेकेदार हैं

किसी भी कलेंडर से मिलान करके प्रलय की जानकारी खोज सकते हो लेकिन पूरी पृथ्वी पर न कोई पता कर पाता है न सटीक जानकारी दे सकता है। क्योंकि ज्योतिष 60% से अधिक जानकारी नहीं दे सकता है। 
व्यक्तिश:, समाज, निश्चित भू-भाग पर किसी अवधि विशेष पर 60% ही गणना हो पाती है।
जीवन - मृत्यु, यश - अपयश, हानि - लाभ ये हैं विधि के हाथ। फिर भी मानव आदिकाल से आज तक यही प्रयास करता आ रहा है कि वह इन तीनों को अपने वश में कर लूं। और इसका प्रथम प्रयास ज्योतिष शास्त्र के अनुसार करने लगा।
कई ज्योतिष गणनाओं के आधार खोजें गये लेकिन आज भी आधे अधूरे परिणाम निकले।
इससे पहले भारतीय ऋषि मुनियों द्वारा वेदों की रचनाएं की गई लेकिन संतुष्टि नहीं हूई। फिर उपनिषदों में उन वेदों की पृष्ठभूमि पर आधारित अनुभवों को साझा करते हुए बहुत ही संक्षिप्त श्लोकों में एक अदृश्य शक्ति के अनुभव को निरुपित किया।
कई ऋषियों ने स्मृतियों रचना की और युग दृष्टि से उनकी सार्थकता पर केंद्रित होकर श्लोकों का संग्रह उपलब्ध कराया। इस बीच योग न्याय आदि की व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया।
ये उतने ही प्रमाणिक हैं जैसे चांद तारे सूरज पृथ्वी आकाश जल और वायु हैं।
लेकिन मानव की चिंता भूतकाल में भोगे गए कष्टों को भविष्य में न भोगना पड़े, इस दृष्टि से ज्योतिष विद्या को दिनचर्या में शामिल किया। ज्योतिष गणनाओं में परिवर्तन होता गया, दुनियाभर में ऐसे-ऐसे ज्योतिषी हुए हैं जिन्हें बहुत सच्चाई पर खरा उतरते हुए स्थापित करने का असफल प्रयास कर रहे हैं।
ज्योतिष के कई स्वरुप हैं। पश्चिम के अलग हैं जिसे पूर्व वाले आज़मा रहे हैं तो पश्चिम वाले पूर्व के ज्योतिष गणनाओं को आजमाने में व्यस्त हैं।
पिछले 400  वर्षों में वैज्ञानिक सोच उभरी है जो है तो सही तथ्यों पर आधारित और परिणाम देने वाली लेकिन उस सनातन सत्य के विपरीत है जिससे प्रकृति की स्वभाविक प्रक्रिया में व्यवधान उत्पन्न हुआ है और इसी कारण आज 400 वर्षों में प्रकृति से संधर्ष जारी है।
एक सर्वाधिक ज्ञान की जानकारी वैज्ञानिकों को मिली थी, जब आइंस्टीन ने timeless theory को उजागर किया था और यह माना था कि जिस समय को घड़ी से गणना कर रहे हो वह झूठी है। परमाणु को तोड़कर जब आगे इलेक्ट्रोन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन का विखंडन नहीं हुआ तब भारत में वैदिक शास्त्रों के ज्ञाताओं से संपर्क किया तब आद्य शंकराचार्य के ब्रह्म सूत्र से स्पष्ट हुआ कि एक स्तरीय इस ब्रह्माण्ड में व्याप्त है जिसका कोई अंत नहीं है। उसको जानने और विवेचन करने वाली कोई भाषा नहीं है। वह तो अनुभव ही किया जा सकता है। जैसे मूक व्यक्ति को गुड़ खिलाएं और पूछें स्वाद कैसा है। भौतिक जगत जिस पदार्थ का विखंडन करते करते आखिर में न्यूट्रॉन, प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन के बाद विखंडन संभव नहीं है।
इस पूरे आलेख में यह समझाने का मैंने अदृश्य शक्ति को समझने का प्रयास मात्र किया है।

Sunday, June 14, 2020

खुशखबरी ! सुप्रीम कोर्ट से

My blog's are in respact of human welfare in all sense. There is way to save earth n human,too.


खुशखबरी! खुशखबरी! खुशखबरी!
भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं ही संज्ञान लेते हुए दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया।
माननीय न्यायालय को यूपी में कचरा गाड़ी में लाश डालने वाले विडियो पर, गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा गुजरात सरकार की फटकार पर भी संज्ञान लेने की उम्मीद बढ़ गई है। साथ ही शिवराज सिंह के मध्यप्रदेश की सरकार गिराए जाने पर संज्ञान लिया जाएगा। अगर जज लोया की तस्वीर नहीं दिखाई गई तो।
यह देश का दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य, इससे भारत दुनियां में बहुत जल्दी विश्व गुरु तो नहीं लेकिन उत्तर कोरिया, चीन और रूस की तरह अलग-थलग तो हो ही जाएगा। आने वाले समय में देश में वन पार्टी रूल लागू हो ही जाएगा।
अमेरिका और ब्रिटेन भारत के उपनिवेश बन जाएंगे। फेसबुक भी मोदी के बीजेपी IT CELL WHATSAPP UNIVERSITY TROLLS की भरपूर मदद कर रहा है। फेसबुक को दिशानिर्देश, जिसको ब्लाक करना  है, को मानना पड़ेगा जिनको IT CELL ट्रोल रिपोर्ट करेगा। यह मोदी और फेसबुक के बीच अलिखित समझौता है।
देश का दुर्भाग्य भी है और सौभाग्य भी कहूंगा कि बीजेपी जितना नीचे गिर सकती है गिर जाए, विनोद दुआ जैसे पत्रकारों पर मुकदमा ठोकती रहे ताकि अंग्रेजी हुकूमत के सारे हथकंडे अपनाए और भारतीयों को इतना बेबस कर दो कि बीजेपी के खिलाफ हर चौराहे पर भीड़ तांडव जारी कर दे। इससे जलियांवाले बाग जैसी घटनाएं घटित हों। जनरल डायर जैसे सेना में अफसरों की भी जरूरत होगी। उसके लिए भारतीय सेना में सर्वोच्च पद पर बैठे अफ़सर व्यवस्था कर ही देंगे। सुरक्षा बल सीमा पर उग्रवादियों के हाथों मर ही रहे हैं अब सड़कों पर पब्लिक भी मरेगी और सुरक्षा बलों के जवानों की भी बलि चढ़ेगी। मोदी की चाणक्य नीति के शिकंजे में प्रशासनिक अधिकारी, जांच एजेंसी, न्यायालय के जज और सुरक्षा बलों के जवानों को लेने में कामयाबी मिल जाएगी और इस प्रकार भारत दुनियां में विश्व गुरु का स्थान बना ही लेगा।
 

कोरोना वायरस के संदर्भ में

कोरोना वायरस के संदर्भ से एक बात कहूंगा, श्री राजीव गांधी के हादसे के बाद कांग्रेस से हो मिलने वाली सारी जिम्मेदारियों (ज़िला अध्यक्ष पद रिकमेंडेशन) से मना कर दिया और इसी बात पर अध्ययन शुरु किया। सच सामने आना चाहिए यह सही मांग है आपकी लेकिन ऐसी घटनाएं होती क्यों हैं?

Tuesday, May 5, 2020

Who is "The creator" and how?

   Manusmriti is the only Vedic script which gives full process of creation of the cosmic form which was not in existence. How it was brought up in existence with the help of the five elementary sources like Water, Air, Fire, Earth and Sky. These five elements and Ego, presence Him, still unknown to me, may for everyone. Creations came to existence in different ways. Four kind of ways are described as the scientist have explained within 400yrs as regards present research. Though it was explained 5000yrs before, more years ago. In the same manner the claim of tree and plants are living creatures, it's breathing process was explained well. 84 lacs kind of all these creatures are recognized that time when Western world was not able to to speak or write a single word.
   Why I am writing this? I want to say that when whole Earth wasn't so civilised we we have explained the cosmic existence including the everlasting rules for society without any dicrimdiscrimi of human races. All discrimination were explained as regards the ability of individual not Caste or Creed. Latter on the cunning people have missleaded the society, rulers of that time.
   Human were given a way of life, Varnashrsham were four, life to live in four stages called four Ashram. It was the process of collecting knowledge of individual's experiences of working, worshipping etc. The Vedas are sources of this knowledge, eplaiexpl by Brahmrishi Manu. This guidelines were misinterpreted latter on, so Lord Krishna have explained in Shrimd Bhagavd Geeta. The same matter of knowledge was explained to Arjuna in the mid of war of Mahabharata. The second chapter of Geeta the whole knowledge of Manusmriti is available. Total eighteen chapters are there, which are the base of all religions of history, have come to existence. Basic of all are the parts of Geeta's different chapters. Truth, Love, none-Violenc with respect for all, though any one may be having faith on God or himself having no faith on God. Everyone can follow Geeta's different kinds of stuff, explained in it without any discrimination of Caste or Creed.
   It is not a way of thinking but it's a way analysis of a action taken by someone. The basic of human behaviour in living on earth is dependency on each other to be secured. The basic guidelines given in the beginning of civilization as I have explained above was dependency on each other. Those who workout on the creation of whole cosmos and then about creatures created by nature, a idea behind it is a creator, unknown source, the power which can create, maintain and destroy them all, too.
   We people of Bharatvarsha having such way of relief for presence situation created by some foolish leadership of nations who are so greedy as well as egoistic, too.
   The whole way of relief is in Gandhiniyan Ideology if anyone is interested to follow it, sincerely. I think everyone don't want to spoil the future of this Earth as well as the civilization of human race.
   Let's come together and win the challenges which have become part of the life.

Friday, November 2, 2018

where is heaven ?


      स्वर्ग " स्वर " में स्थित है - नरक " शरीर " में स्थित है
              पूरी मानव जाति शरीर को बहुत महत्व देती आई हैं जिसकी साफ-सफाई पर ध्यान देते हैं और उसके दिमाग-मन-त्वचा पर ध्यान केद्रित रहता है लिकिन हमारे श्वांस में सारे शरीर का अस्तित्व टिका है उसको हम महत्त्व ही नहीं देते | यही भौतिकता का जगत है जो स्थिर नहीं है | जो श्वांस पर टिक गया उसके अधीन सारी भौतिक-अभौतिक संपत्तियां हो जाती हैं यह ज्ञान हमें वैदिक शास्त्र देते हैं लेकिन भारतीयों के कालांतर पुराणों में यही बात कथा रूप में दी गई हैं | इनमें विभिन्न शक्तियों का उदाहरण देकर समझाने का प्रयास किया है कि इश्वर से सब कुछ सुलभ है लिकेन लोगों ने व समझाने वालों ने इन देवों की (जो ईश्वर की शक्तियों है) पूजा अर्चना शुरू करवा दी और मूल विचारों में प्रेक्षण कर दिया, इसी कारण से ही इस मूल तथ्य ईश्वर को भ्रष्ट करके भौतिक प्रक्रियाओं में भारतीय उलझ के रह गये और अंधविश्वासों की मान्यताओं के जाल में फंस के रह गये और इसी कारण से हम वैदिक सनातन पृष्ठ-भूमि से अलग हो गये | जब तक भारतीय थे तब तक तो ठीक थे लेकिन जब हमें '' हिन्दुस्तानी और इन्डियन '' कहा जाने लगा तब से हम अपने मूल स्वरुप से भटक गये| मज़े की बात यह है कि भारत के अध्यात्मिक जगत में धर्म घुस गया, सत्य-अहिंसा-प्रेम नदारद हो गया और परमात्मा का स्थान देवी देवताओं ने ले लिया जिसके बारे में श्रीमद् भगवद्गीता में के नवम अध्याय में कृष्ण कहते है कि
           येऽपयन्यदेवता  भक्ता  यजन्ते श्राद्धयान्विटा: |
       तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूरावाकम् || 23/9 
      कोन्तेय! श्रद्धा से युक्त जो भक्त दूसरे - दूसरे देवताओं को पूजते हैं , ये भी मुझे ही पूजते हैं; क्योंकि वहाँ देवता नाम की वस्तु तो होती नहीं है ;  किन्तु उनका यह पूजन अविधिपूर्वक है , मेरी (ईश्वरीय स्वरुप) प्राप्ति की विधि से रहित है | जिस जगह कोई सत्ता नहीं है उस जगह तुम जाते हो फिर भी मैं तुम्हारी आस्था को उस जगह घनीभूत करता हूँ और फल भी देता हूँ लेकिन वो सब नाशवान हैं | क्योंकि सनातन धर्म भौतिक की जगह अध्यात्मिक उन्नति के लिए बना है | सनातन धर्म ने 84 लाख योनियों से छूटने का साधन दिया है जिससे '' पुनरपि जन्मं पुनरपि मरणं '' से छुटकारा दिलाने की राह बनती है और यह राह सिर्फ वही पकड़ सकता है जो मनुष्य है जो बन्धन रहित है | जिसने तय कर लिया है, तो वह वह साधू सामान स्वयमेव हो जाता है | इसमें किसी वर्ण या योनि का वर्गीकरण नहीं है |
        श्वांस की साधना हमारे भीतर स्थित परमात्मा तक जाने का रास्ता है यही पूजा की सही विधि है जो जीवित मुक्ति के स्तर तक ले जाती है और जो इस पर टिक गया उसको शांति व आनंद का अनुभव हो ही जाता है | लेकिन प्रतक्ष्य तो शरीर ही है इसलिए चिंताएं घेरती हैं और जीने का आनंद और शांति कोसों दूर रह जाती है और आखिर में चिता तक मानव पंहुचने को होता है तब वह दान-पुण्य आदि धार्मिक आयोजनों में बढ़ - चढकर भाग लेने लगता है तब तक बहुत देरी हो चुकी होती है | जीवन भर कमाया खाया और बचाया लेकिन मौत के भय से अपने स्वस्थ बने रहने के लिए बचाया था वो भी खर्च कर चुका होता है |
       गीता इस बात को मानव के सभी स्तरों की व्याख्या करके यह समझने में सहयोग करती है कि हम अपना जीवन भय मुक्त कैसे जियें, यहाँ से मुक्ति का पहला सोपान बनता है | आप मंदिर-मस्जिद-गुरूद्वारे चर्च या कोई अन्य भी आपकी आस्था के केंद्र हो, वहां बेशक जाएँ लेकिन कोशिश करें अपने भीतर ही परमात्मा का या जिस एक मात्र ईष्ट की आराधना भी वहां जाकर करते हैं उसको अपने भीतर के मन मंदिर में भी श्वांस के साथ योग करने का प्रयास करेंगें तो फिर आप अपने में ही स्थित हो जायेंगें और यही असली आराधना-साधना हो जाएगी | उसके बाद सब कुछ लोक दिखावा सा महसूस होने लगता है यहीं से आध्यात्म की पृष्ठ-भूमि तैयार होने लगती है |
        महाराज जी श्री प्रेम रावत ने अपने एक प्रवचन में कहा है " जो पूजा की जाती है वह लगभग अपने मन की पूजा करते है लेकिन परमात्मा की पूजा कहां हुई|" क्योंकि हम अपनी आकांक्षाओं की पूर्ती के लिए पूजा करते हैं और पूजा के समय मन इन्हीं में घूमता रहता है | मन जो शरीर की ज़रूरतों में उलझा रहता है | जो कभी ख़त्म न होने वाली लालसाओं के पीछे दौड़ता रहता है, यही नरक है |
       आज विकास के नाम पर आदमी ने संघर्ष और विनाश का रास्ता चुना है तो स्वर्ग की जगह दुनियां नरक के रास्ते चल रही है |अभी हाल ही में सयुक्त राष्ट्र संघ ने चेतावनी दी है कि यदि तपन बढ़ने वाले कारणों पर रोक नहीं लगी तो पृथ्वी निकट भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं में घिर सकती है जिसका उस समय कोई निदान करना असंभव हो जायेगा | नरक के अनुभव लोगों को होने लगे हैं जो शरीर पर टिके वे इस स्थिति को ओर भयावह बना देंगें | तपन को बढ़ाने वाले उपकरणों को तुरंत प्रभाव से रोका जाये | इसमें ग्रीन हाउसेज, एयर कंडीसन के साधन, विद्युत् उत्पात के नये - पुराने तरीके, वाहनों को ही तेल मुक्त करें इसी प्रकार के छोटे बड़े रूप के साधनों से पृथ्वी मुक्त होगी तो तापमान में परिवर्तन अवश्य होगा | इससे अनावश्यक शोर भी रुकेगा | पेड़-पौधों को सरंक्षण मिले और अधिक से अधिक पेड़ उगाये जाएँ |
        मानव जाति को बचाना है तो शोर-गुल करने वाले उपकरणों पर रोक लगे, सिर्फ आर्थिक लाभ के लिए, सत्ता में बने रहने के लिए प्रचार हेतु, धार्मिक होने का दिखावा करने के लिए भयंकर शोर करके मानव सहित छोटे से लेकर बड़े जीवों को पागल व अर्धविक्षिप्त होने को मजबूर न करें | इसी कारण रिहायसी इलाकों से पशु-पक्षी, जीव-जन्तु पलायन कर रहेहैं और कई प्रजातियाँ समाप्त भी हो गई हैं |
     प्रकृति ने जो कुछ भी बनाया है और परमात्मा ने सरंक्षण दिया है वह एक प्रकार से प्राकृतिक संतुलन बनए रखने का तरीका है | पिछले 400 सालों में इस संतुलन को इन्सान ने अपने, सिर्फ अपने लाभ को ध्यान में रखकर विकास के नाम पर विनाश की राह पकड़ी थी जो अब और भी विकराल रूप लेने जा रहा है |   
     जिस ज्ञान पर विज्ञान घमंड कर रहा है वह तो भारतीय आर्ष ग्रंथों में पहले से ही वर्णित है जो परमात्मा की प्राप्ति के दौर में भारतीय आर्ष ग्रंथो के रचियताओं को यूं ही मिल गया था उसको वैज्ञानिकों द्वारा भौतिक साधनों से प्राप्त करने का आधा-अधूरा प्रयास है और विनाशकारी भी है | परमात्मा से सब कुछ सुलभ है उसकी जगह भौतिक साधन अपना कर मानव जाति संकट में फंसती जा रही है |
     जिसे मनुस्मृति में प्रलय कहा है वह दो प्रकार का हैं जो पूर्णत: वैज्ञानिक है
(1) एक प्रलय प्रति क्षण हो रहा है जिसको चिकत्सक कहते हैं कि बच्चे से लेकर वृधावस्था तक मानव शरीर में बॉडी-सेल बनते और ख़त्म होते रहते हैं | उसकी रफ़्तार बाल्य अवस्था में तेज होती है और ज्यों ज्यों वृद्ध होते जाते है मिटने की रफ़्तार तो स्वाभाविक ही होती है लेकिन बाद में पुन: निर्मित होने की रफ़्तार घटने लगती है और जीव मृत्यु को प्राप्त होता है |  प्रत्येक जीव की जीवन की लम्बाई अलग - अलग है और उनके जीवन का आखरी पड़ाव अलग - अलग है | यह भारत के आर्ष शास्त्रों में वर्णित है | वैज्ञानिक इसमें अकारण ही प्रेक्षण कर मानव जाति  को घोर संकट में डाल चुके हैं |
(2) जब पूरे ब्रह्माण्ड के एक हिस्से पृथ्वी पर ध्यान देते है तो एक सत्य सामने आ रहा है कि जिस संतुलन से प्रक्रिया चल रही थी उसको अप्राकृतिक तरीके से मानव ने रफ़्तार में बदल दिया ( जैसे बॉडी-सेल की प्रक्रिया में तेज , उसके बाद धीमी गति से थी जो स्वाभाविक थी ) नतिज़ा हमारे सामने है  कि विकास की गति तेज होते ही मानव जाति संकट में आ गई | प्राकृतिक प्रक्रियाओं में दखल का यही नतीज़ा होना था | प्रकृति के विरुद्ध चलना, आपसी व्यवहार में कई स्वार्थों के चलते संघर्षों को जन्म देना कमजोर से लेकर शक्तिशाली तक की आदत में सुमार हो चुका है और यह 400 सालों की विकास (विनाश) की यात्रा का नतीजा है | यह प्रलय का संकेत है जिसे गोष्ठियों और सम्मेलनों से रोकने का नाटक मात्र हो रहा है | व्यक्तिस: भी और राष्ट्रों के स्तर पर कमजोर और शक्तिशाली एक ही स्वाभाव के दिख रहें हैं | विनाश इसका अंतिम सत्य है |
       यहाँ नुट्रीलाईट फ़ूड सप्लीमेंट बनाने वाले व्यक्ति को वैज्ञानिक ही कहूँगा और उसी ने यह विचार दिया और जेवान एंडल और रिच डीवोस ने जो इस कोर्पोरेशन के संचालक थे,  इन संचालकों ने  नुट्रीलाईट फ़ूड सप्लीमेंट प्रोडक्ट्स को दूर दृष्टि से बेचना शुरू किया क्योंकि भविष्य में मानव जाति को शुद्ध कुछ भी नहीं मिल पायेगा | ये प्रोडक्ट एक तरह से आज मानव जाति के लिए वरदान सिद्ध हो रहे हैं यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी है |
        इसी तरह आज सनातन धर्म के आर्ष ग्रंथों से जीने की तलाश संभव है यदि मानव चाहे तो ही | इसके लिए प्रकृति से छेड़-छाड़ बहुत हो चुकी अब इस प्रकृति के अनुसार चल कर ही पृथ्वी को बचाया जा सकता है | यह बात 1988 में श्री भागवान प्रजापति ने अपने अखबार खेजड़ा एक्सप्रेस ( पाक्षिक ) में लिख दिया था और आज भी वह एक पेज में लगातार 30 साल से लिखते आ रहे हैं लेकिन भारत की सरकार ने और विश्व की किसी संस्था ने गौर करने का कष्ट ही नहीं किया | जबकि आज U.N.O पृथ्वी की उम्र 12 साल बता रहा है इस चेतावनी के साथ कि यदि पृथ्वी का तापमान इसी रफ़्तार से बढ़ता गया तो गर्म हवाएं चलेंगी, ग्लेशियर पिग्लेंगें, समुद्र का जल स्तर बढेगा, कई टापू डूब जायेंगें, यह जल पृथ्वी पर फैला तो भरी तबाही होगी, सूखा पड़ेगा, अकाल की स्थिति होगी, पृथ्वी भी अपना संतुलन खो देगी | यह मनुस्मृति के अनुसार प्रलय जो जीवों की प्रक्रिया में होता है तो अब सामूहिक रूप से होगा इस पृथ्वी ग्रह पर तो इसको क्या कहोगे ? प्रलय ही तो होगी |
         जब परमात्मा को धोखा देने का भी प्रयास होगा लेकिन मौत जब पीछा कर लेती है तो कहीं भी छिप जाना वह वहां से भी घसीट लाएगी | अब समय व्यक्तिगत बचाव का नहीं सामूहिक बचाव का ही एक मात्र रास्ता बचा है | इसके लिए पहल कौन ? कब ?कैसे शुरू करेगा ? इस पर ही निर्भर करता है |
ओउम ही एक मात्र सहारा है |
ओउम शांति !!!
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